दिल में छिपा दुष्ट रावण है.....
दिल में छिपा दुष्ट रावण है।
मानवता का हुआ मरण है।।
पूजन पाठ नित्य सब करते।
नहीं रहल में रामायण है।।
नैतिकता का पाठ पढ़ाते।
रखा नहीं घर में दर्पण है।।
सत्ता खातिर दौड़ लगाते।
हरा-भरा खाते यह त्रण है।।
बच्चों के हाथों मोबाइल।
खेल-कूद का हुआ क्षरण है।।
जात-पाँत में उलझे नेता।
समझ न पाते कैसा रण है।।
लोकतंत्र बदनाम हो रहा।
बस सत्ता का संघर्षण है।।
राम राज्य का वरण करें हम।
स्वर्ग संपदा आरोहण है।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’