घट-घट भ्रष्टाचार, आजकल इस दुनिया में.....
घट-घट भ्रष्टाचार, आजकल इस दुनिया में।
राजनीति व्यापार, आजकल इस दुनिया में।।
फूलों का है ताज, पहनने को सब आतुर।
सत्ता पर अति भार,आजकल इस दुनिया में।।
सरकारी दामाद, बने कुछ ऐश कर रहे।
जनता है लाचार, आजकल इस दुनिया में।।
नेताओं की चाल, गजब की है मतवाली।
चमचों की भरमार,आजकल इस दुनिया में।।
बदल गया रण-क्षेत्र, चलें अब खूब मिसाइल।
खोईं हैं तलवार,आजकल इस दुनिया में।।
चलती अंधी दौड़, लड़ाई-मार-दुलत्ती।
नैतिकता की क्षार, आजकल इस दुनिया में।।
मंच सजा साहित्य, लक्ष्मी-पुत्र ही बैठें।
शाल दुपट्टा हार,आजकल इस दुनिया में।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’