हो गईं आँखें सजल, फिर याद तेरी आ गई.....
हो गईं आँखें सजल, फिर याद तेरी आ गई।
दिल हुआ रोकर विमल, फिर याद तेरी आ गई।।
दिन गुजारे थे कभी, दर्द की परछाइयों में।
लौट आए सुखद पल, फिर याद तेरी आ गई।।
अब अकेला हो गया, काटता आँगना मेरा।
पी रहे कबसे गरल, फिर याद तेरी आ गई।।
भूल क्या मुझसे हुई, कुछ भी समझ आता नहीं।
प्रीति कर जाती विकल, फिर याद तेरी आ गई।।
श्रम-पसीने को बहा, हमने सजाया स्वप्न-घर।
किंतु जाना था अटल, फिर याद तेरी आ गई।।
बेटियों को ब्याह कर, लाते रहे हैं आज तक।
यह कहावत है विफल, फिर याद तेरी आ गई।।
कुछ उड़े आकाश में, जब अग्नि का गोला बने।
दब गए स्वप्न भूतल, फिर याद तेरी आ गई।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’