हो गई हमसे कैसी भूल.....
हो गई हमसे कैसी भूल।
दिलों में चुभे अनेकों शूल।।
धर्म का होता व्यापक रूप,
हवा ला रही साथ में धूल।
हुई किरकिरी दुष्ट की खूब,
हिल गईं उसकी सारी चूल।
धर्म का पहले समझें मर्म,
बाद में पहिनें माला-फूल।
गुनाहों की काली करतूत,
उगा है आँगन वृक्ष-बबूल।
प्रेम से रहें सभी जन साथ,
पड़े हैं झूले मिलकर झूल
विश्व में भारत देश महान,
यहाँ की माटी है अनुकूल ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’