जन्म मरण का सिलसिला.....
जन्म मरण का सिलसिला,चला सनातन काल।
कुछ जीवन के काल में, करते बड़ा कमाल ।।
कविता अक्षर-धाम हैं, अक्षर-अक्षर मंत्र।
जप-तप है आराधना, संकट का है यंत्र।।
स्वप्न सलोने खो रहे, छायी तम की रात।
प्रभु सबका कल्याण कर, आए सुखद प्रभात।।
आतंकी है वायरस, कौन बचा हे नाथ।
अब उमंग उत्साह से, छूट रहा है साथ।।
मंदिर में कीर्तन जमीं, प्रभु से जुड़ा लगाव।
छाया संकट दूर हो, भरें सभी के घाव।।
गहरा तम जग से हटे, नव प्रभात की चाह।
यह आशा विश्वास ही, है जीवन की राह।।
कोरोना संजीवनी, आई घर-घर आज।
टीका सबको ही लगे, तभी बनेंगे काज।।
प्रत्याशा बढ़ने लगी, मिली दवाई नेक।
टीका लगने पर सभी, काटेंगे फिर केक।।
दो गज की दूरी रखें, धोएँ अपने हाथ।
मास्क लगाकर ही रहें, तब जीवन है साथ।।
सेवा को तत्पर रहें, यही राह है नेक।
हर मन में करुणा बसे, मानवता ही एक।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’