जीवन में जब आते गम.....
जीवन में जब आते गम हैं।
आँखें सबकी होती नम हैं।।
कलयुग की लीला यह देखो,
आँखों में अब कहाँ शरम हैं।
डरें नहीं झंझावातों से,
पाएँ मंजिल यही धरम हैं।
तूफानों में किश्ती खेते,
पार लगाते उनका श्रम हैं।
मेहनत कश भूखा है सोता,
सरकारों को अब भी भ्रम हैं।
वृद्ध मात-पिता हैं हो गए,
फिर भी काया में दमखम हैं।
कर्तव्यों को कौन पूँछता,
अधिकारों पर चली कलम हैं।
तन में भगवा चोला ओढ़ा,
धर्म-ज्ञान का उन्हें वहम हैं।
सबको जो हैं मूर्ख समझते,
उन में ही तो बुद्धि कम हैं।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’