जिंदगी तू बता, अब कैसे जिया जाए.....
जिंदगी तू बता, अब कैसे जिया जाए
फटे हुए दिल को ,अब कैसे सिया जाए
दुनिया की उम्र बड़ी, जीवन है छोटा सा
जीवन का अमरित, अब कैसे पिया जाए
आसमाँ है बड़ा, दिखता कहीं छोर नहीं
माँग-सितारों की, अब कैसे दिया जाए
बावला मन सदा, दौड़ने में व्यग्र रहा ।
थके हुए तन से, अब कैसे किया जाए
आशा विलुप्त सब, जर जर सी नाव हुई
पतवारों को दिया सौंप अब कैसे लिया जाए
थक चुका मैं बड़ा, अब कैसे चला जाए
मंजिल दूर अभी, अब कैसे उड़ा जाए
हार चुके तन से, अब कैसे लड़ा जाए
अतीत गया गुजर, शेष कुछ तो बचा नहीं
बीते बचपन में, अब कैसे मुड़ा जाए।
खो गईं पतवारें सब, जर-जर भी नाव है
नदिया उफान पर, अब कैसे बचा जाए।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’