कभी न मानें हार, मिले जयकार तभी है.....
कभी न मानें हार, मिले जयकार तभी है।
सुदृढ़ हो आधार, मिले जयकार तभी है।।
मंजिल लगती दूर, मगर खुद चलकर आती।
लक्ष्य करो स्वीकार, मिले जयकार तभी है।।
चलो नेक सब राह, कभी ना पथ भटकोगे।
लाओ मत कुविचार, मिले जयकार तभी है।।
छोड़ निराशा भाव, संजोएँ दिल में आशा।
दिल को रखें निखार, मिले जयकार तभी है।।
कट्टरता को त्याग, बनें हम मानव-धर्मी।
यही धर्म का सार, मिले जयकार तभी है।।
लें विवेक से काम, द्वेष से दूर रहें हम।
कर लो जग से प्यार, मिले जयकार तभी है।।
गीता का कर कर्म, वही है फल को पाता।
जीवन का शृंगार, मिले जयकार तभी है।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’