कैसी यह लाचारी है.....
कैसी यह लाचारी है।
विकट समस्या भारी है।।
फिदा पड़ोसी पर होते ,
मजहब से ही यारी है।
आतंकी सब सखा बने,
मानवता भी हारी है ।
काश्मीर में शांति आई,
खिली वहांँ फुलवारी है।
लोकतंत्र में भ्रष्टाचार,
जनता से मक्कारी है।
गहरी जड़ें वंशवाद की,
नेता की बलिहारी है।
जन सेवक कहलाते जो,
गाड़ी-घर सरकारी है।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’