कट्टरता का ओढ़ लबादा.....
कट्टरता का ओढ़ लबादा।
खुद तो बने हुए हैं दादा ।।
दूर रहें पढ़ने-लिखने से,
खुद को कहते हैं शहजादा।
नारी को समझे हैं दासी,
गधा समझकर बोझा लादा।
कट्टरता मानव का दुश्मन,
मानवता का हुआ बुरादा।
छद्म वेश धरकर हैं चलते,
लड़ने को होते आमादा।
कटी पतंगें सद्भावों की,
रिपु दल का है बुरा इरादा।
कहती है मानवता जग से,
रक्त बहे न करो यह वादा ।
लहू एक रंग हर प्राणी में ,
क्यों करता हो धर्म तकादा ।
तालिबानी सोच से उबरो ,
मानव-धर्म ही* सीधा-सादा।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’