खोई रौनक बाजारों की.....
खोई रौनक बाजारों की।
प्लेटें रूठीं ज्योनारों की।।
घोड़े पर दूल्हा है बैठा,
किस्मत फूटी इन क्वारों की।
सब पर कानूनी पाबंदी,
भूल गए हैं मनुहारों की।
मिलना जुलना नहीं रहा अब,
लगी लगामें सरकारों की।
करोना के जाल में उलझी,
नहीं गूँज अब जयकारों की।
संकट में भी बढ़ी दूरियाँ,
हालत बुरी है दीवारों की।
जन्म-मरण संस्कार गुम गए,
घटी रौनकें त्योहारों की ।
साँसों की अब बढ़ी किल्लतें,
नहीं व्यवस्था अंगारों की।
सकारात्मकता को खोजें,
खबरें झूठी अखबारों की।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’