कृष्ण की धुन को सजाने,बाँसुरी ही चाहिए.....
कृष्ण की धुन को सजाने,बाँसुरी ही चाहिए।
सुख के पल जीना गर हो, माधुरी ही चाहिए।।
हम सभी इंसानियत के, धर्म को धारण करें।
सुख-शांति की छाया रहे, चातुरी ही चाहिए।।
शक्तियाँ जब आसुरी हों, प्रबल होती तब दिखें।
सँहार करने शक्ति-सँग, बहादुरी ही चाहिए।।
जिंदगी को जीने का, अर्थ निकलता है तभी।
प्यासा पथिक भटके न, जल अंजुरी ही चाहिए।।
फूल खिलते हैं बगीचे, में भले ही अनगिनत।
बाग में मुस्करातीं नित, पाँखुरी ही चाहिए।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’