मन में अब उत्साह नहीं है.....
मन में अब उत्साह नहीं है।
दिखती मुझको राह नहीं है।।
अपनों ने जो जख्म दिए हैं।
उसकी कोई थाह नहीं है।।
मैंने खूब सजाया आँगन।
पर उनको परवाह नहीं है।।
एक-एक कर बिछुड़े अपने।
इक जुटता की चाह नहीं है।।
साथ रहें यह चाह नहीं है।।
पूरा जीवन खपा दिया जब।
चिंताओं का, दाह नहीं है।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’