मन में कुछ उत्साह नहीं है.....
मन में कुछ उत्साह नहीं है।
दिखती मुझको राह नहीं है।।
अपनों ने जो जख्म दिए हैं।
उसकी कोई थाह नहीं है।।
हमने खूब सजाया आँगन।
पर उनको परवाह नहीं है।।
एक-एक जब बिछुड़ें सपने।
इक जुटता की चाह नहीं है।।
पूरा जीवन खपा दिया अब।
मन में चिंता, दाह नहीं है।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’