माना चारों ओर कोहरा घना हुआ.....
माना चारों ओर कोहरा घना हुआ।
पर सूरज का उगना कैसे मना हुआ।
अंधकार में साथ निभाता जीवन भर,
वह दीपक उजियारे का सरगना हुआ।
मेघों से क्यों बरसात है होती नहीं,
दोस्ताना हवा से निरा बचपना हुआ ।
वातावरण में आप जहर घोलते हो,
दो शब्दों के बोल क्या भर्त्सना हुआ ।
देते उपदेश फिरते हो जमाने को,
रोटी फिर उसी तवे पर सेंकना हुआ।
मुखौटे पहनकर जो आ रहे हैं अभी,
उनके सद्चरित्र का कभी तौलना हुआ ।
देखो रक्त रंजित है, मानवता अभी,
कैसा होगा विहान, अब सोचना हुआ ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’