मंथन करते रहे उम्र भर.....
मंथन करते रहे उम्र भर,
निष्कर्षों से है पाया।
धुन के रहे सदा ही पक्के,
जो ठाना कर दिखलाया।
पले अभावों के आँगन में,
अपने पैरों खड़े हुए।
दिया सहारा गैरों को भी,
सीढ़ी चढ़ने अपनाया।
गिरे हुओं की पढ़ी इबारत,
मंजिल पर बढ़ना सीखा।
रिद्धि-सिद्धि की रही चाहना,
धीरज धर कर सुलझाया।
चले निरंतर पथ में अपने,
मात-पिता का साथ मिला।
सँवर गया जीवन जब अपना,
बिछुड़ा हमसे हर साया।।
दृढ़ संकल्प अगर हो मन में,
मिले सफलता घड़ी घड़ी।
निश्छल भाव रहे जीवन में,
सदा मिले प्रभु की छाया।
हिन्दी-भाषा को कहते थे,
यह अनपढ़ की भाषा है।
आज उसी भाषा ने देखो,
जग में परचम फहराया।
देख रहा अब विश्व हमारा,
अंतरिक्ष में सूर्योदय।
विश्व गुरू की जगी चेतना,
देशों ने शीश झुकाया।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’