मौन कुछ गहरा हुआ है.....
मौन कुछ गहरा हुआ है।
वक्त भी ठहरा हुआ है।।
आइए हम साथ जी लें,
प्रेम का पहरा हुआ है।
गर्म साँसों की दहक से,
सुर्ख सा चेहरा हुआ है।
थाम रक्खो हाथ मेरा,
सूर्य अब बहरा हुआ है।
कामनाओं की इमारत,
जीत का सेहरा हुआ है।
झुर्रियाँ तन में बढ़ीं जब,
दर्द भी दोहरा हुआ है।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’