मीत मेरी बन गयी अँगड़ाइयाँ.....
मीत मेरी बन गयी अँगड़ाइयाँ,
हम सफर फिर बन गयी परछाइयाँ।
गाँव की पगडंडियों में थक गये,
राह में मुझको मिली अमराइयाँ।
एक दूजे हाथ थामे चल रहे,
मेरे कानों में बजी शहनाइयाँ।
सूना घर मुझको चिढ़ाता था कभी,
दो दिलों ने नाप ली गहराइयाँ।
द्वार में तोरण बँधें उल्लास के,
झूमतीं खुशियाँ दिखी, अँगनाइयाँ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’