मौन छा गया घर-आँगन में.....
मौन छा गया घर-आँगन में।
जीवन फँसा कठिन उलझन में।।
संध्या-काल घड़ी शुभ आई।
किसकी नजर लगी उपवन में?
राह देखती रही हमारी,
प्रिय बहना रक्षाबंधन में।
लेता ईश्वर कड़ी-परीक्षा,
विश्वासों के उत्पीड़न में।
याद आ गई मात-पिता की,
लौट पड़े अपने बचपन में।
अधिकारी नेता की चाहत,
धनसंचय के आराधन में।
मानवता के शत्रु बन गए,
धर्म-पताका आरोहण में।
राजनीति के मुखड़े बदले,
सत्ता पाने की अनबन में।
भरा पेट, जब खुशहाली हो,
देखो बैठ रहे अनशन में।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’