मौसम में चल रहा छल-कपट.....
मौसम में चल रहा छल-कपट, न नवनीत दिखता है।
चलो अब मौन हो जायें, समय विपरीत दिखता है।।
मित्रता का पैमाना बदला, अब इस जमाने में,
जहाँ निज स्वार्थ की भाषा, वही मनमीत दिखता है ।
सद्भावना हैं मर रहीं , तलवारें हैं तनीं-तनीं,
छप्पन इंची सीना भी, कुछ भयभीत दिखता है।
दिलों की गहराईयों में, कौन झाँकता है भला ,
बेसुरीले वाद्य में भी, मधुर संगीत दिखता है ।
दिया वरदान ईश्वर ने, सभी को नेक नीयत से,
गढ़ो सौहार्द परिभाषा,सुखद मनप्रीत दिखता है ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’