नारी ही नारी की दुश्मन.....
नारी ही नारी की दुश्मन।
उनसे ही सजता नंदनवन।।
गंगा जब बहती है उल्टी,
जीवन में बढ़ जाती उलझन।
पांचाली, कैकयी, मंथरा,
युग में मचा गई हैं क्रंदन।
खिचीं भीतियाँ घर-आँगन में,
परिवारों में होती अनबन ।
सीता, रुक्मिणी या सावित्री,
होता उनका ही अभिनंदन ।
समरसता समभाव बने तो,
जीवन भर महके है चंदन ।
सास-बहू, ननदी-भौजाई,
गूढ़ पहेली का है कानन।
सामंजस्य रहे जीवन में,
हँसी-खुशी में डूबे तन-मन।
पड़ें हिंडोले बाग-बगीचे,
जेठ गया तब आया सावन।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’