नव-पीढ़ी तो खुलकर कहती.....
नव-पीढ़ी तो खुलकर कहती, अब रिश्तों में क्या रखा है।
ढलती उम्र हाथ जब मलती, अब रिश्तों में क्या रखा है।।
तुमने किया हमें भी करना, परंपरा तो यह कहती।
हर पीढ़ी है तागा बुनतीं,अब रिश्तों में क्या रखा है।।
सात जनम तक साथ निभाना, सुख-दुख में भी संग रहो।
राहें स्वतंत्र उन्हें दिखती, अब रिश्तों में क्या रखा है।।
पालक का कर्तव्य रहा है,पाल-पोसकर करें बड़ा ।
फिर जीवन भर क्यों सिर धुनते, अब रिश्तों में क्या रखा है।।
हर पालक ने दी कुरबानी, योगदान तब बड़ा कहाँ
व्यर्थ ही क्यों उँँगली उठतीं हैं, रिश्तों में क्या रखा है।।
आँख-मूद कर सोच रहे अब,बैठे सबके मात-पिता ।
लालन-पालन में क्या कमियाँ, अब रिश्तों में क्या रखा है।।
रिश्ते ही समाज को गढ़ते, रिश्तों से दुनिया चलती।
बिगड़े तो मानव को छलती,अब रिश्तों में क्या रखा है।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’