नेताओं का जमघट है.....
नेताओं का जमघट है ।
सत्ता खातिर खटपट है।।
घर-घर से नाता टूटा,
सूना-सूना पनघट है।
जल धारा निर्मल बहती,
नदिया का गंदा तट है।
बस्ता लादा कंधों पर,
गुमा बचपना-नटखट है।
बैठी गाँव में चौपाल,
ननकू दौड़ा सरपट है।
मंत्री का जब हो दौरा,
सड़कें बनतीं झटपट है।
नदी पार जाना जब भी
पार लगाता केवट है।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’