पढ़ा सुदामा-कृष्ण चरित्र.....
पढ़ा सुदामा-कृष्ण चरित्र।
दिखे नहीं हैं ऐसे मित्र।।
दीवारों में टांँग रहे,
फ्रेम जड़ा कर उनका चित्र।
बुरे लोग भी चाह रहे,
सदा मिले संबंध पवित्र।
ज्ञानी होकर मूर्ख बने,
यही बात है बड़ी विचित्र।
खुद छलिया का रूप धरें,
किंतु चाहते हैं सौमित्र।
धरती ने श्रृंगार किया,
उभरा है अनुपम सुचित्र।
ईश्वर का यह रूप दिखा,
बिखरे दिकदिगंत यह इत्र ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’