पहले लड़ा गरीबी से था.....
पहले लड़ा गरीबी से था,जीवन में कर तुरपाई।
तभी हमारे घर में आकर, खुशियों ने की पहुनाई।।
बचपन से थी जुम्मेदारी, निर्वाहन कर्तव्यों का,
दबे पाँव चुपके से आई, बीत गई फिर तरुणाई
सदा बुजुर्गों से सीखा है, श्रम संकल्प धैर्य रखना,
प्रतिफल मिला तभी जीवन में, कृपा ईश ने बरसाई।
जीवन संघर्षों में बीता, समय काल सब भूल गया।
रिश्ते नातों में रस बसकर, घर में गूँजी शहनाई।
झंझावातों से टकराए, बनकर निकले हम सोना,
अंधड़ तूफानों से डरकर, भगी हार कर परछाई
शाश्वत मूल्यों की रक्षा में, रुके न हम बढ़ते जाएँ,
कम मत आँको अपने को तुम, यह जीवन की सच्चाई
भटको कभी प्रलोभन में मत, लक्ष्य-साध राह बनाओ
देखो पथ में साथ बहेगी, तेरे संँग-सँग पुरवाई
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’