पथ में काँटे जो बोते हैं.....
पथ में काँटे जो बोते हैं।
जीवन भर खुद ही रोते हैं।।
राज कुँवर बनकर जो रहते,
चौबिस घंटों तक सोते हैं ।
अकर्मण्य ही बैठे रहते,
सारे अवसर वे खोते हैं।
धन का लालच जब भरमाए,
गहरी खाई के गोते हैं।
उजियारे की राह तकें जो,
अपनी किस्मत को खोते हैं ।
कर्मठता से दूर हटें जब,
जीवन खच्चर बन ढोते हैं।
आशा की डोरी जब टूटे,
नदी किनारे ही होते हैं।
श्रम के पथ पर हैं जो चलते,
भविष्य सुनहरा संजोते हैं।
विजय श्री का वरण जो करते,
मन चाहे फूल पिरोते हैं।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’