पीड़ाएँ हो गईं घनेरी.....
पीड़ाएँ हो गईं घनेरी।
फैलाए मुँह खड़ा-फनेरी ।।
तन के पिजड़ें में कैदी दिल,
आगत स्वागत करे कनेरी।
युग बदला पर चाह न बदली
बिंदी चूड़ी बेच मनेरी।
प्रगति और बदलाव सुनिश्चित
नेता होता चतुर अनेरी।
मुँह का स्वाद बदलने खातिर
चौराहों में खुले पनेरी।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’