राह हरियाली निहारे.....
राह हरियाली निहारे।
गाँव की यादें पुकारे।।
आओ लौटें बालपन में,
जो सदा हमको सँवारे।
गाँव की पगडंडियों में,
प्रियजनों के थे दुलारे।
गर्मियों की छुट्टियों में,
मौज मस्ती दिन गुजारे।
बैठकर अमराइयों में,
चूसते थे आम सारे।
ताकते ही रह गए थे,
बाग के रक्षक बिचारे।
आँख से आँखें मिलें जब,
प्रेम के होते इशारे।
पहुँच जाते थे नदी तट,
प्रकृति के अनुपम नजारे।
भूल न पाए हैं बचपन,
संग-साथी थे हमारे।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’