राधा के हाथों पिचकारी.....
राधा के हाथों पिचकारी ।
छिपे कहाँ हो कृष्ण मुरारी ।।
ढूँढ़ रहीं हैं वृंदावन में ,
पड़ीं गोपिका उन पर भारी।
कुँज-गलिन में छिपे कन्हैया,
बजा रहे छुप-छुप कर तारी ।
लट्ठमार-गोपी जब निकली,
प्रकट हो गए रास बिहारी ।
श्याम-वर्ण के नंद दुलारे,
गौर-वर्ण वृषभानु दुलारी।
सिर पर मोर मुकुट है शोभे,
मोहक छवि पीतांबरधारी ।
खड़ी देखती अपलक रह गईं,
सम्मोहित राधा बेचारी ।
भर पिचकारी पड़ी रंग की,
भींज गई राधा की सारी।
ग्वाल बाल सब खड़े घेर के,
देख रहे गोकुल नर नारी।
हाथ जोड़ राधा तब बोली,
करो माफ मुझको गिरधारी।
तुम रक्षक हो जगत दुलारे,
हम सब तुम पर हैं बलिहारी।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’