रोती आँखें सबको गम है.....
रोती आँखें सबको गम है।
लूट रहे उनमें दमखम है।।
अट्टहास वायरस है करता,
सबकी आँखों में डर-सम है।
आक्सीजन की नहीं व्यवस्था,
देख सिलेंडर में अब बम है।
धूम मची है नक्कालों की,
उखड़ी साँसें निकला दम है।
बन सौदागर खड़े हुए अब,
कोई रहा नहीं हमदम है ।
लाशों का अंबार लग रहा,
आँख हो रही सबकी नम है ।1
लोग अधिक हैं लगे पंक्ति में ।
वैक्सीन की डोजें कम है।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’