सालों पर साल गुजरते.....
सालों पर साल गुजरते जा रहे हैं।
गुजरे लमहे बिछुड़ते जा रहे हैं।।
छिपा लेती कभी माँ गोद में अपने,
जिंदगी खातिर झगड़ते जा रहे हैं।
बचपन की सभी यादों ने मुख मोड़ा,
पिछले पृष्ठों को पलटते जा रहे हैं ।
जीवन को सँवारा खुशहाली खातिर ,
पर बिदाई में सुबकते जा रहे हैं।
आँखों से बचाकर क्या पिला डाला,
कुछ कदम बढ़ते बहकते जा रहे हैं।
सत्ता के खातिर कितने अन्धे हुए,
जला दिल को वे दहकते जा रहे हैं।
धर्म अब बाजार में आया इस तरह,
कुछ समर्थन में अकड़ते जा रहे हैं।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’