संविधान का मर्म समझिए.....
संविधान का मर्म समझिए ।
मानवता का धर्म समझिए।।
हँसी खुशी से जीना सबको,
कर्तव्यों से कर्म समझिए।
अहंकार से जीवन टूटे,
नर्म दूब का मर्म समझिए।
दिल की गहराई में झाँकें ,
गोरा-काला चर्म समझिए।
विनयशील जीवन को जीना,
जल शीतल या गर्म समझिए।
ऊँचा मस्तक रहे सदा ही,
कभी न आवे शर्म समझिए।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’