सूखे-वृक्ष टहनियाँ देखो.....
सूखे-वृक्ष टहनियाँ देखो।
तपे-धूप दुपहरियाँ देखो।।
आसमान से सूरज धधका।
धरती की बिवाइयाँ देखो।।
नदी पोखरे डर कर भागे।
सूखी हैं बावलियाँ देखो।।
जंगल बाग बगीचे उजड़े।
कूक रहीं कोयलियाँ देखो।।
जीव जगत के कंठ सूखते।
पानी की भटकइयाँ देखो।।
छानी-सड़कें आग उगलतीं।
विद्युत की अठखेलियाँ देखो।।
अथक निरंतर श्रम को करतीं।
चलीं-कतार चीटियाँ देखो।।
मेकअप में दुल्हन शरमाई।
घर की सजीं देवियाँ देखो।।
पकवानों की खुशबू महकी।
परिणय पर फुलझड़ियाँ देखो।।
हमतो बसे नर्मदा के तट।
सुनते हैं बंबुलियाँ देखो।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’